लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया
ताहिर अली ने
इशारा किया, यही
बजरंगी है। प्रभु
सेवक ने बनावटी
क्रोध धारण करके
कहा-क्यों बे,
कल के हंगामे
में तू भी
शरीक था?
बजरंगी-शरीक किसके
साथ था? मैं
अकेला था।
प्रभु सेवक-तेरे
साथ सूरदास और
मुहल्ले के और
लोग न थे;
झूठ बोलता है!
बजरंगी-झूठ नहीं
बोलता, किसी का
दबैल नहीं हूँ।
मेरे साथ न
सूरदास था और
न मोहल्ले का
कोई दूसरा आदमी।
मैं अकेला था।
घीसू ने हाँक
लगाई-पादड़ी! पादड़ी!
मिठुआ बोला-पादड़ी
आया, पादड़ी आया!
दोनों अपने हमजोलियों
को यह आनंद-समाचार सुनाने दौड़े,
पादड़ी गाएगा, तसवीरें दिखाएगा,
किताबें देगा, मिठाइयाँ और
पैसे बाँटेगा। लड़कों
ने सुना, तो
वे भी इस
लूट का माल
बँटाने दौड़े। एक क्षण
में वहाँ बीसों
बालक जमा हो
गए। शहर के
दूरवर्ती मोहल्लों में अंगरेजी
वस्त्रधाारी पुरुष पादड़ी का
पर्याय है। नायकराम
भंग पीकर बैठे
थे, पादड़ी का
नाम सुनते ही
उठे, उनकी बेसुरी
तानों में उन्हें
विशेष आनंद मिलता
था। ठाकुरदीन ने
भी दूकान छोड़
दी, उन्हें पादड़ियों
से धार्मिक वाद-विवाद करने की
लत थी। अपना
धर्मज्ञान प्रकट करने के
ऐसे सुंदर अवसर
पाकर न छोड़ते
थे। दयागिरि भी
आ पहुँचे, पर
जब लोग पहुँचे
तो भेद फिटन
के पास खुला।
प्रभु सेवक बजरंगी
से कह रहे
थे-तुम्हारी शामत
न आए, नहीं
तो साहब तुम्हें
तबाह कर देंगे।
किसी काम के
न रहोगे। तुम्हारी
इतनी मजाल!
बजरंगी इसका जवाब
देना ही चाहता
था कि नायकराम
ने आगे बढ़कर
कहा-उस पर
आप क्यों बिगड़ते
हैं, फौजदारी मैंने
की है, जो
कहना हो, मुझसे
कहिए।
प्रभु सेवक ने
विस्मित होकर पूछा-तुम्हारा क्या नाम
है?
नायकराम को कुछ
तो राजा महेंद्रकुमार
के आश्वासन, कुछ
विजया की तरंग
और कुछ अपनी
शक्ति के ज्ञान
ने उच्छृंखल बना
दिया था। लाठी
सीधी करता हुआ
बोला-लट्ठमार पाँड़े!
इस जवाब में
हेकड़ी की जगह
हास्य का आधिाक्य
था। प्रभु सेवक
का बनावटी क्रोध
हवा हो गया।
हँसकर बोले-तब
तो यहाँ ठहरने
में कुशल नहीं
है, कहीं बिल
खोदना चाहिए।
नायकराम अक्खड़ आदमी था।
प्रभु सेवक के
मनोभाव न समझ
सका। भ्रम हुआ-यह मेरी
हँसी उड़ा रहे
हैं, मानो कह
रहे हैं कि
तुम्हारी बकवास से क्या
होता है, हम
जमीन लेंगे और
जरूर लेंगे। तिनककर
बोला-आप हँसते
क्या हैं, क्या
समझ रखा है
कि अंधे की
जमीन सहज ही
में मिल जाएगी?
इस धोखे में
न रहिएगा।
प्रभु सेवक को
अब क्रोध आया।
पहले उन्होंने समझा
था, नायकराम दिल्लगी
कर रहा है।
अब मालूम हुआ
कि वह सचमुच
लड़ने पर तैयार
है। बोले-इस
धोखे में नहीं
हूँ, कठिनाइयों को
खूब जानता हूँ।
अब तक भरोसा
था कि समझौते
से सारी बातें
तय हो जाएँगी,
इसीलिए आया था।
लेकिन तुम्हारी इच्छा
कुछ और हो,
तो वही सही।
अब तक मैं
तुम्हें निर्बल समझता था,
और निर्बलों पर
अपनी शक्ति का
प्रयोग न करना
चाहता था। पर
आज जाना कि
तुम हेकड़ हो,
अपने बल का
घमंड है। इसलिए
अब हम तुम्हें
भी अपने हाथ
दिखाएँ, तो कोई
अन्याय नहीं है।
इन शब्दों में नेकनीयती
झलक रही थी।
ठाकुरदीन ने कहा-हुजूर, पंडाजी की
बातों का खियाल
न करें। इनकी
आदत ही ऐसी
है, जो कुछ
मुँह में आया,
बक डालते हैं।
हम लोग आपके
ताबेदार हैं।
नायकराम-आप दूसरों
के बल पर
कूदते होंगे, यहाँ
अपने हाथों के
बल का भरोसा
करते हैं। आप
लोगों के दिल
में जो अरमान
हों, निकाल डालिए।
फिर न कहना
कि धोखे में
वार किया। (धीरे
से) एक ही
हाथ में सारी
किरस्तानी निकल जाएगी।
प्रभु सेवक-क्या
कहा, जरा जोर
से क्यों नहीं
कहते?
नायकराम-(कुछ डरकर)
कह तो रहा
हूँ, जो अरमान
हो, निकाल डालिए।
प्रभु सेवक-नहीं,
तुमने कुछ और
कहा है।
नायकराम-जो कुछ
कहा है, वही
फिर कह रहा
हूँ। किसी का
डर नहीं है।
प्रभु सेवक-तुमने
गाली दी है।
यह कहते हुए
प्रभु सेवक फिटन
से नीचे उतर
पड़े, नेत्रों से
ज्वाला-सी निकलने
लगी, नथुने फड़कने
लगे, सारा शरीर
थरथराने लगा,एड़ियाँ
ऐसी उछल रही
थीं मानो किसी
उबलती हुई हाँड़ी
का ढकना है।
आकृति विकृत हो
गई थी। उनके
हाथ में केवल
एक पतली-सी
छड़ी थी। फिटन
से उतरते ही
वह झपटकर नायकराम
के कल्ले पर
पहुँच गए, उसके
हाथ से लाठी
छीनकर फेंक दी;
और ताबड़तोड़ कई
बेंत लगाए। नायकराम
दोनों हाथों से
वार रोकता पीछे
हटता जाता था।
ऐसा जान पड़ता
था कि वह
अपने होश में
नहीं है। वह
यह जानता था
कि भद्र पुरुष
मार खाकर चाहे
चुप रह जाएँ,
गाली नहीं सह
सकते। कुछ तो
पश्चात्तााप, कुछ आघात
की अविलम्बिता और
कुछ परिणाम के
भय ने उसे
वार करने का
अवकाश ही न
दिया। इन अविरल
प्रहारों से वह
चौंधिया-सा गया।
इसमें कोई संदेह
नहीं कि प्रभु
सेवक उसके जोड़
के न थे;
किंतु उसमें वह
सत्साहस, वह न्याय-पक्ष का
विश्वास न था,
जो संख्या और
शस्त्रा तथा बल
की परवा नहीं
करता।
और लोग भी
हतबुध्दि-से खड़े
रहे; किसी ने
बीच-बचाव तक
न किया। बजरंगी
नायकराम के पसीने
की जगह खून
बहानेवालों में था।
दोनों साथ खेले
और एक ही
अखाड़े में लड़े
थे। ठाकुरदीन और
कुछ न कर
सकता था, तो
प्रभु सेवक के
सामने खड़ा हो
सकता था; किंतु
दोनों-के-दोनों
सुम-गुम-से
ताकते रहे। यह
सब कुछ पल
मारने में हो
गया। प्रभु सेवक
अभी तक बेेंत
चलाते ही जाते
थे। जब छड़ी
से कोई असर
न होते देखा,
तो ठोकर चलानी
शुरू की। यह
चोट कारगर हुई।
दो-ही-तीन
ठोकरें पड़ी थीं
कि नायकराम जाँघ
में चोट खाकर
गिर पड़ा। उसके
गिरते ही बजरंगी
ने दौड़कर प्रभु
सेवक को हटा
दिया और बोला-बस साहब,
बस, अब इसी
में कुशल है
कि आप चले
जाइए, नहीं तो
खून हो जाएगा।
प्रभु सेवक-हमको
कोई चरकटा समझ
लिया है बदमाश,
खून पी जाऊँगा,
गाली देता है!
बजरंगी-बस, अब
बहुत न बढ़िए,
यह उसी गाली
का फल है
कि आप यों
खड़े हैं; नहीं
तो अब तक
न जाने क्या
हो गया होता।
प्रभु सेवक क्रोधोन्माद
से निकलकर विचार
के क्षेत्र में
पहुँच चुके थे।
आकर फिटन पर
बैठ गए और
घोड़े को चाबुक
मारा, घोड़ा हवा
हो गया।